मंगलवार, अक्तूबर 26, 2010

मै आप से उतना ही प्यार करता हूँ

रेत पर पड़ती है बूँद जब,
तो समां जाती है न जाने कहाँ
प्यासी ही रह जाती है रेत पहेले के ही तरह,
मेरी आँखों की रेत पर तुम्हारे दरश की जल बूँद भी,
ठीक वैसे ही समां जाती है न जाने कहाँ,
और प्यासी रह जाती है ,मेरी आँख रेत की तरह
एक बार बरसो इस तरह,
बह उठे मेरी आँखे ,
आ जाये एक बाढ़ और तोड़ दे पलकों का बांध
उस बहती हुई धार में बह जाये सारा दर्द ,
और फिर मैं ठहर कर ,
तुम्हरे हांथो में हाथ रख कर
कहूं प्यार से ,
मुझे तुमसे प्यार है ,
उतना की जितना करती है काया आत्मा से ,
जीवन स्वांस से ,
फूल खुसबू से ,
रात अंधरे से,
दिवस आकाश से
ठीक उतना ही प्यार करता हूँ
मैं आप से ,
 
तुम्हारा-- अनंत

शनिवार, अक्तूबर 23, 2010

मै कैसे तुम्हे बिसरूंगा


मै कैसे तुम्हे बिसरूंगा 
तुम रक्त धार मे हो मिली हुई 
साँसों के धागे से हो सिली हुई 
मै हर धडकन के साथ प्रिये, 
रह रह कर तुम्हे पुकारूँगा 
मैं कैसे तुम्हे बिसरूंगा 

मेरे स्वप्नों का दर्पण टूट गया 
तेरा हाथ मेरे हाथों से छूट गया 
मैं इस टूटे स्वप्न दर्पण में,
तेरा आनन ही निहारूंगा 
मैं कैसे तुम्हे बिसरूंगा 

तू मुझे बिसारे तेरी इच्छा है ,
क्या पता मुझे क्या गन्दा है क्या अच्छा है ,
पर मैंने तो ठान लिया,
मैं खुद को तुझ पर वारुंगा , 
मैं कैसे तुम्हे बिसरूंगा ,

''तुम्हारा- अनंत''