मंगलवार, अक्तूबर 26, 2010

मै आप से उतना ही प्यार करता हूँ

रेत पर पड़ती है बूँद जब,
तो समां जाती है न जाने कहाँ
प्यासी ही रह जाती है रेत पहेले के ही तरह,
मेरी आँखों की रेत पर तुम्हारे दरश की जल बूँद भी,
ठीक वैसे ही समां जाती है न जाने कहाँ,
और प्यासी रह जाती है ,मेरी आँख रेत की तरह
एक बार बरसो इस तरह,
बह उठे मेरी आँखे ,
आ जाये एक बाढ़ और तोड़ दे पलकों का बांध
उस बहती हुई धार में बह जाये सारा दर्द ,
और फिर मैं ठहर कर ,
तुम्हरे हांथो में हाथ रख कर
कहूं प्यार से ,
मुझे तुमसे प्यार है ,
उतना की जितना करती है काया आत्मा से ,
जीवन स्वांस से ,
फूल खुसबू से ,
रात अंधरे से,
दिवस आकाश से
ठीक उतना ही प्यार करता हूँ
मैं आप से ,
 
तुम्हारा-- अनंत

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