सोमवार, नवंबर 15, 2010

मन करता है खुल कर रो लूं



मन करता है खुल कर रो लूं ,
कब तक दर्द दबे दिल में,
कब तक नाव रहे साहिल में ,
बूँद बने- बने जी ऊबा है, मन करता है सागर हो लूं ,
मन करता है खुल कर रो लूं
ये यादों का बोझ निराला है ,
बड़ी मुस्किल से इसे संभाला है ,
जब तक जीवन बाकी है ,तब तक इसको हंस कर ढो लूं ,
मन करता है खुल कर रो लूं ,
सब नहा रहे मुझमे आ कर,
मै सूखा पड़ा हूँ सागर हो कर ,
कोई मुझपे बरसे ऐसा कि, अपना तन- मन आज भिगो लूं ,
मन करता है खुल कर रो लूं ,

                               '' तुम्हारा --अनंत ''

कोई टिप्पणी नहीं: