रविवार, फ़रवरी 13, 2011


तुम्हे मेरी  आँखो में कुछ खरगोश सा दिखता है ?  
एक खरगोश सा सपना,
दिल से आँख तक दौड़ लगता है ,
रुकता है ,
हाँफते हुए झांकता है ,
बाहर दुनिया में ,
और सहम कर बैठ कर जाता है ,
एक खरगोश सा सपना ,
दिल से आँख तक दौड़ लगता है ,
हरी घास पर दौड़ता हुआ रेला ,
किसी पतंग के मांझे सा उलझा हुआ झमेला ,
जब डराता है उसे ,तो वो बेचारा अकेला ,
दिल कि जमी पर ,
एक कब्र खोद कर दफ़न हो जाता है ,
नंगी लाश पर बिछा हुआ कफ़न हो जाता है ,
ये सपना है गरीब का ,
जो दिवाली पर अपनी दहलीज़ पर दीपक ,
होली में अपने बच्चों के हाँथ में पिचकारी ,
सुबह शाम पेट में रोटी ,
पढता हुआ बेटा,
पढ़ती होई बेटी ,
देख कर,
मन ही मन बच्चों सा मुश्कुरता  है ,
एक खरगोश  सा सपना ,
दिल से आँख  तक दौड़ लगता है ,
''तुम्हारा -- अनंत ''

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