मंगलवार, मार्च 08, 2011

कहूँ कैसे की क्या ग़म है

कहूँ कैसे की क्या ग़म है ,
क्यूँ आँखें ये मेरी नम है , 
दरो -दिवार भीगीं है ,
खून से लथ-पथ आँगन है ,
सिसक कर रो रहा है जो,
कि व्याकुल हो रहा है जो ,
शहीदों का पियारा  वो,
 भारत माँ का  दामन है ,
मराठी नाम कर कोई मेरी हिंदी डरता है ,
देशद्रोही हो कर देशभक्त कहलाता है ,
कर के गुमराह जनता को लड़ता है  -भिड़ता है ,
जला कर बस्तियां देखों रोयियाँ  पकता है , 
न जमजमा,न तरन्नुम  ,न कोई गीत गुंजन है ,
फिरकापरस्त कड़ी पाशों के खिलाफ ये ''अनंत ''का गर्जन है ,
 शहीदों का पियारा ये भारत माँ का दामन है ,

किले पर चढ़ कर हर वर्ष कोई कुछ बोल जाता है ,
मेरी गरीबी भाषण में कैसे तोल जाता है ,
छिन गयीं रोटियाँ मेरी कि अब फांके पर जीता हूँ ,
कम्बखत है वो कैसा जो हिंद को बढ़ता बताता  है,
जिधर मैं देखता हूँ  बस मुझे अवसाद दीखता है, 
  अलगाववाद ,   क्षेत्रवाद ,आतंकवाद , दीखता है ,
 सरकारें हो गयीं दरिंदा भूंख का सामान अब  हम हैं ,
शहीदों का पियारा  ये भारत माँ का दामन है ,

यूं  ही खोते रहोगे तुम गर यूं  ही सोते रहोगे तुम ,
अपनी ही रहा पर कब तक कांटे  बोते रहोगे तुम ,
उठो आब क्रांति कि कोई नई ज्वाला जला दो तुम ,
शहीद तुममे जिन्दा हैं उन्हें ये बात  दो तुम ,
बनो अब बोस बाबु सा कि संसद को हिला दो तुम ,
भगत ,आज़ाद , बिस्मिल ,की याद तजा करा दो तुम ,
परायों का नहीं प्यारे ये हमारा ही चमन है ,
शहीदों का पियारा ये भारत माता का दमकान है ,
तुम्हारा- -अनंत 

1 टिप्पणी:

dastan-e-awara ने कहा…

anurag,i love this comment upon the atrocities by the so called indian state .it is an inspiring and heart touching poem.I has invited my friends to read this.