गुरुवार, अप्रैल 21, 2011

हमशक्ल पेड़

अज़ीब-अज़ीब काम करता है आदमी ,
जब वो किसी अज़ीब काम में फँस जाता है ,
याद है मुझे ,
 जब मेरी आँखे तेरी आँखों में फँसी थी ,
 कुछ ऐसे ही अज़ीब काम किये थे मैंने भी ,
किये थे दर्शन ,सुबह-दुपहर-शाम ,
उस मंदिर में ,
जहाँ  पुजारी के अलावा ,
कोई और नहीं जाता ,
टहलने जाता था ,
उस मैदान में ,
जो तेरे घर के सामने था ,
पर बंजर था ,
बन्दर ,कुत्ते ,गाय, चींटी,
सब को दाने खिलाये थे ,
तुझे रिजाने के लिए.............

अब जब मैं दूर चला आया हूँ ,
तो मुझे बताओ तो ,
उस मंदिर के ''राम '' ने ,
तुम्हें वो सब बताया था कि नहीं ,
जिसे मैं कह के आया था ,
तुहें बताने के लिए ............

उन बंदरों ,गायों ,चीटियों ने ,
कहीं मेरी रोने की नक़ल तो नहीं की तुम्हारे सामने ,
मैं जब तन्हाई में तेरी याद में रोता था ,
इनमे से कोई न कोई साथ होता था ,
और हाँ ...........
वो पेड़ बड़ा हो गया होगा ,
जिसे मैंने उस बंजर जमीन पर बोया था ,
जो तुम्हारे घर के सामने है ,
गौर से देखना उस पेड़ की शक्ल मुझसे मिलती होगी ,


जल्दी बताना मैं इंतज़ार में हूँ ,

तुम्हारा --अनंत  

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

BAHUT UNDA ANANT JI KYA JAJBAATON KO AWAAZ DI HAI AAPNE SACH ME DIL KE ANDAR KI BAAT NA JANE KAISE BAHAR LAATE HAI AAP SACH ME AWESOME HAIN AAP ............