रविवार, अप्रैल 17, 2011

वो सच था या झूठ

औंधे मुँह आ गिरा  दिन ,
रात के पैरों में ,
पड़ा-पड़ा सो रहा है ,
देख कर कोई सपना .......
जो भागना चाहा कभी ,
फजीलों ने रोक लिया , 
और बंद कर दिया .
अँधेरे कमरों में,
रात के आगोश में .............
धीरे-धीरे सुलगने के लिए ,
उस दिन ,दिन के चेहरे पर ,
एक मायूस सी मुस्कुराहट,
कि जिसे  खिंचा गया हो .
दोनों सिम्त से ,
अबाले पढ़े थे ,दोनों जुबाँ पर ,
एक जुबाँ वो कि जिससे सच कहता था दिन ,
एक वो जो झूठ कहती थी ,
पर आज दोनों जुबानें खामोश हैं ,
 शायद दिन अभी तक समझ नहीं पाया ,
उस रात जो रात ने कहा ,किया.............

 वो सच था या झूठ 
तुम्हारा --अनंत 

1 टिप्पणी:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

रात और दिन का सच कहती हुई गहन रचना