शुक्रवार, सितंबर 30, 2011

लावारिश सामान

माँ तो बस माँ होती है ,माँ जैसी और कहाँ होती है ????????????????
रात भर  चलता रहा ,
जहन के मैदान में ,
धीरे -धीरे ..........
शायद कोई ख्याल था ,
या फिर ख्याल का बच्चा ,
वो बम्बई की इमारत जितना सख्त और ऊँचा ,
या फिर तुरंत पैदा हुए बच्चे सा रेशमी ,
वो ख्याल कुछ अजीब ही था ,
हाँ कुछ अजीब ही था वो ................
माँ का दूध महक रहा था उस ख्याल से ,
आँखों में दिवाली का परा गया काजल लगा कर आया था वो ख्याल ,.....
पर मैं क्या करता ?,
बीबी बगल में लेटी थी ,

वो ख्याल बड़ी खामोशी से चिल्ला रहा था !!!!!!!!!!
 तुम यहाँ  मखमली गद्दे पर सो रहे हो ,
माँ वहाँ रसोई में  सा पड़ी है ,

माँ की याद में -
तुम्हारा --अनंत 

1 टिप्पणी:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मार्मिक अभिव्यक्ति