शुक्रवार, दिसंबर 14, 2012

इंसानियत का नशा.......


मैं रात-ओ-दिन एक अजब ज़ंग लड़ता हूँ,
मैं अपने लहू से अपनी गजल गढ़ता हूँ,
वो बेवफा हो गया तो क्या हुआ ''अनंत''
मैं उसके खातिर अब तलक दिल मे वफा रखता हूँ,
वो मिलता है तो मुँह पर दुआ और दिल मे मैल होती है,
मैं जब भी मिलता है ,दिल आईने सा सफा रखता हूँ,
शायद यही वजह है जो इस घाटे के दौर मे भी,
मैं यारों की दौलत और मोहब्बत का नफ़ा रखता हूँ,
जला है जब से नशेमान मेरा मैं नशे मे हूँ ,
अब हर वक़्त बस मैं इंसानियत का नशा रखता हूँ
तुम्हारा---अनंत

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