बुधवार, जुलाई 31, 2013

अनगिनत आवाजों के घेरे....

पैरों पर पर्वत बाँध कर, भाग रहा हूँ मैं
साँसों की सड़क पर
और धडकनें भूल गयी हैं रास्ता
सपनों की गली में भटकते भटकते

नींद लेटी है रात के बगल में
दोनों जाग रहे हैं चुपचाप
और चाँद सो गया है
भूखे पेट, पानी पी कर

तारे हाँफते रहते हैं आजकल
और जब उन्हें देखो
तो धमकी देते हैं कि
वो अपनीं नसें काट लेंगे

मैं अपनीं आँखें बंद कर लेता हूँ
और अँधेरे से मोमबत्ती जलाने को कहता हूँ
पर अँधेरा कहता है कि उसके पांव कटे हैं
वो उठ नहीं सकता, चल नहीं सकता
वो बस पसरा रहेगा

जिंदगी के सारे सचों को मैं झूट बताता हूँ
और इसीबीच जिंदगी के सारे झूठ सच होते जाते हैं
मेरे पीछे जो लोग आ रहे हैं
वो मेरे क़दमों के निशान धोते जाते हैं

इस तरह मैं हर बार
अपने दर्द के साथ अकेला बचता हूँ
जैसे बच जातीं हैं,
कुछ सासें, सांस लेने के बाद
कुछ आंसू, बहुत रोने के बाद
कुछ बातें, सबकुछ कहने के बाद
और कुछ जिंदगी, मौत के बाद

तुम्हारे गुम्बद और किले से
जिंदगी खूबसूरत दिखती है
क्योंकि वहाँ से,
जागती नीदें
घायल रातें
भूखा चाँद
आत्महत्या करते तारे
हांफती हुई साँसे
कीचड़ में धंसी धड़कने
और भटके हुए सपने नहीं दीखते

तुम्हे वहाँ से लोगों के पैरों में बंधे हुए पर्वत
और अदृश्य आवाजों में उलझे हुए हाँथ नहीं दीखते

जहाँ मोम्बतियों की लवें
पैदा होते ही फांसी लगा लेतीं हैं
मैं वहाँ से आया हूँ

जहाँ सूरज पैदा होने से पहले मर जाता है
मैं उस जमीन पर खड़ा हूँ
जमीन के नीचे दबीं हैं मेरी ही  हड्डियां
और आकाश में तैर रही हैं मेरी लाशें

यहाँ मुझे अनगिनत आवाजें घेरे हुए हैं
जो मुझसे कह रही हैं
जिंदगी को ज़िदगी बनाना है
परिंदों को पंख लगाना है
इसलिए माफ करना
मैं तुम्हारी सपनीली दिवार पर लिखे नारे नहीं पढ़ सकता
मैं तुम्हारी तरह गुम्बद या किले पर नहीं चढ सकता

जहाँ से जिंदगी बहुत खूबसूरत दिखती है

तुम्हारा-अनंत   

शुक्रवार, जुलाई 26, 2013

एक दिन न्यूटन का नियम सच होगा..

अंगडाई के आँगन में
जब तुमने नींद के कपड़े उतारे थे 
उसी वक्त सूरज ने चुराई थी 
तुमसे कुछ रौशनी 
और तुमने मुस्कुरा कर कहा था 
सुबह हो गयी!

तुम्हारी पायल ने कोयल को बोलना सिखाया था 
और होठों की लाली ने गुलाब को खिलना
तुम्हारी चाल से चलना सीखा था नदी ने 
तुम्हारी आँखों से देखा था आसमान ने धरती को 
पेड़ों पर तुम्हारी हंसी का नशा फल बन कर लदा था
और तुम इन सब से बेखबर 
कक्षा 9 की किताब में
"न्यूटन का तीसरा नियम'' पढ़ रही थी 

प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है

दरवाज़ा खुला था उसी समय 
और हुई थी तुम पर एक क्रिया 
जिसमे तुम्हारे नींद के कपड़े फाड़े गए 
तुम्हारी रौशनी को अँधेरा पहनाया गया 
और मुस्कान पर एक लिजलिजा ला चुम्बन चिपका दिया गया 
तुम्हारे भीतर बसी प्रकृति महज़ शरीर भर हो कर रह गयी थी 
जिसे छील कर फेंक दिया गया था, एक कोने में
खून से लथपथ एक सच पड़ा था, अधमरा सा
शायद वो तुम थी!   

तुम उस क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं कर सकी 
और धुआँ हो गयी थी 
जबकि मैं तुम्हे आग लिखना चाहता था 

अखबारों के तीसरे पन्ने में 
छोटे से कोने में 
चंद पंक्तियों में छपा था तुम्हारा उपन्यास 
जिसे पढ़ा था तुम्हारे लाचार भाई और बाप ने
सरकारी अस्पताल में मुर्दाघर के बहार  
और भरी थी किसी को सुनाई न देने वाली एक मुर्दा आह! 

न्यूटन का नियम झूठा है 
तुमने आखरी बार यही सोचा होगा 
जब हथेलियों की रेखाओं पर झूली होगी तुम 

या फिर इस विश्वास के साथ 
आँखों के पानी में डूब मरी होगी तुम 
कि एक दिन न्यूटन का नियम सच होगा
और प्रत्येक क्रिया के बराबर विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होगी 


तुम्हारा-अनंत 


बुधवार, जुलाई 24, 2013

मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ

एक प्यास का जंगल है
जो पानी के रेगिस्तान पर उग आया है 
फिदाइन मन गुजर रहा है 
ठहरे हुए समय की तरह 

एक रास्ता है 
जो माँ के दुलार से बम की आवाज़ तक फैला हुआ है 
एक और रास्ता है 
जो खुद शुरू हो कर खुद पर खतम हो जाता है  

मैं फलीस्तीन के किसी बच्चे की तरह 
सपनों की अलमारी में 
खिलौने और गुब्बारे रख कर आता हूँ 
पर न जाने वो कैसे 
बन्दूक, बारूद और धुआँ हो जाते हैं 

मुझे अफ़सोस होता है 
जब मुझे मालूम पड़ता है 
कि चेतना भिखारी की जूठन 
वैश्या की नींद 
मुर्दे के शरीर से उतरा हुआ कपड़ा हो चुकी है 
और अब लोगों को उसके नाम से उलटी आती है 

सब डरा हुआ चेहरा लिए हँस रहे है 
उड़ते हुए जहाज़ को देख कर 
भाप हुए जा रहे है

और मैं खून की नदी में 
अपने बाप की लाश पर तैर रहा हूँ 
माँ की चीखों के साज़ पर 
भाई बहनों के आंसूं के गीत गा रहा हूँ 
मुझे साफ़ दिखाई दे रही है 
लाशों के पहाड़ के उस पार 
मेरी वो ज़मीन 
जहाँ मैं बोऊंगा 
अपने बाप के सपने 
आपनी माँ की चीखें 
भाई बहनों के आंसूओं के बीज
और काटूँगा आज़ादी की फसल 

तब सारे प्यास के पेड़ गिरा दिए जायेंगे 
पानी के रेगिस्तानों को जला दिया जायेगा 
और बमों की आवाज़ के मुंह पर 
एक ढीठ बच्चे की हंसी लिख दी जायेगी 

मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ 
जब कैदी परिंदों के पंख तलवार हो जायेंगे 
और परवाज़ क़यामत 

मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ 
जब बच्चों के सपनों की अलमारी में 
बन्दूक, बारूद और धुएं की जगह 
खिलौने और गुबारे होंगे 
जब उनकी नींद में 
तेज़ाब नहीं बरसेगा 

मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ 
जब आजादी लिखने-पढ़ने की चीज़ नहीं 
बल्कि जीने और महसूस करने की चीज़ होगी 

तुम्हारा-अनंत