गुरुवार, जुलाई 20, 2017

प्रेम और परिवर्तन..!!

जब आवाज़ों में घुला हुआ सन्नाटा
और सन्नाटों में लिपटी हुई आवाज़
सुनाई देने लगे तुम्हे

और तुम रातों के दोनों सिरों के बीच
उलझन के पुल पर
सवालों की छड़ी टेकते हुए चलो
तो समझना कि कोई उतरा है
तुम्हारे दिल के सरोवर में इस तरह
कि पूरा पानी गुलाबी हो गया है

या टूटा है भीतर कुछ इस तरह
कि छप्पर से टपकने लगी हैं
बरसात की बूँदें
और सुकून के बिस्तर पर लेटा यक़ीन
भीग कर एकदम खारा हो गया है

तुम ऐसे में तलाशोगे जब खुद को कभी
तब शब्दों के मर चुके अर्थों के बगल बैठा हुआ पाओगे

आंसू तुम्हें उस समय
तुम्हारी आत्मा की नदी से बहती हुई
एक धारा लगेंगे

और ख़ामोशी उस नदी में तिरती हुई नाव

निर्वात से संघात के इस समय
जब सबकुछ बदल रहा होगा
तुम महसूसना कहीं किसी कोने में बैठकर
तुम्हारा "मैं" तुम्हे गढ़ रहा होगा

कोई तुम्हारे भीतर इसतरह बढ़ रहा होगा
जैसे बढ़ती है बरसात में नदी

सबकुछ डूबा देने के लिए
पुराने को मिटा देने के लिए
नए को जगह देने के लिए

प्रेम और परिवर्तन
दोनों उलझन के पाँव से चल कर आते हैं
और हमारे भीतर, बहुत भीतर
इस तरह गहराते हैं

कि हम प्रेमी बन जाते हैं
परिवर्तित हो जाते हैं

तुम्हारा-अनंत     

अभिशप्त नट..!!

चादर पर पड़ी सिलवट
मेरी परेशानियों की केचुल है
और बिस्तर पर जागती करवट
उस किताब के पन्ने पलटने की क्रिया
जिसमे दर्ज हुआ है, मेरा अतीत
और लिखा जाना है मेरा भविष्य

मैं उन जगती हुई आँखों की तरह हूँ
जिसमे भरीं हैं स्मृतियों की किरचें
और खाली कर दी गयी है नींद

जागना, जेठ की दोपहरी में
तपती सड़क पर नंगे पाँव चलना है
और ठहरना अपनी नसें काट कर मुस्कुराने जैसा कुछ

खाली बटुए का सन्नाटा
कोई मायूस फिल्म है
जिसे देख कर मन अजीब सा उदास हो जाता है
और सपना वो जरुरत जो जीने के लिए जरूरी है

यथार्थ भ्रम का प्रतिबिम्ब है
और भ्रम तो भ्रम है ही

सैकड़ों जागती रातों ने मुझे ये सत्य बताया है
कि जन्म और मृत्यु कुछ नहीं हैं
सिवाए दो बिंदुओं के
जिनके बीच तान कर बाँध दिया गया है जीवन

जिस पर अभिशप्त नट की तरह चलते हैं हम
शरू से लेकर अंत तक

तुम्हारा-अनंत

 

सोमवार, जुलाई 17, 2017

खाली सफ़े की कविता

जो लिखा है
सब अधूरा है, लाचार है
इसलिए कभी कभी सोचता हूँ
लिखना बेकार है

किसी दिन छोड़ दूंगा खाली सफ़ा
जो मन में आए पढ़ लेना उसपे
तुम्हारे और मेरे अनकहे, अनसुने की
इससे बेहतर दूसरी कोई कविता
हो ही नहीं सकती

खाली सफ़े भी कविता होते हैं
पर हम उन्हें पढ़ नहीं पाते
जैसे हम अक्सर पढ़ नहीं पाते
किसी का मन और मौन

तुम्हारा- अनंत



गुरुवार, जुलाई 13, 2017

आदिकवि

वो आदिकवि
अभिवक्ति के मामले में सबसे असफल व्यक्ति रहा होगा
जो अपने भीतर अटकी बात को
लाखों बार, हज़ारों तरीके से कहने के बाद भी नहीं कह सका
रचनाओं पे रचनाएँ, रचता रहा
पर वो नहीं रच सका, जो उसके भीतर
फकीरों की तरह भटकता था
अधमरे आदमी की तरह कराहता था
पागलों की तरह चीखता था
और स्त्रियों की तरह रोता था
वो कभी कभी
बच्चों की तरह मुस्काता भी था
पर ऐसा कम ही होता था

आदिकवि नहीं रच सका
वो जो रचना चाहता था
नहीं कह सका वो जो कहना चाहता था
वो हर युग में जन्म लेता रहा
और अपने असमर्थता को पूरे सामर्थ से जीता रहा
अपने भीतर अटकी हुई बात को
हज़ार तरीके से कहता रहा
और कोई पुराना मकान जैसे आधी रात को बरसात में ढहता है
ठीक वैसे ढहता रहा

दुनिया वालों !
तुम उसकी बिखरन, टूटन उठाते रहे
कविता की तरह गाते रहे
कवि को  ब्रह्म बताते रहे
बिना ये जाने कि कवि सबसे मजबूर और असहाय व्यक्ति होता है
बिलकुल दंगों में बीच सड़क पर खड़े अनाथ बच्चे की तरह

वो जो नहीं लिख सका है कवि
वही लिखा जाना है
आज नहीं तो कल
तब तक जारी रहेगी असमर्थता के उस पार निकल जाने की जिद्द

तुम्हारा-अनंत

मंगलवार, जुलाई 04, 2017

आशा के गीत लिखूंगा मैं....!!

इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं
जब क्षण-क्षण में छाई पराजय है
तब कण कण में जीत लिखूंगा मैं

जब मित्रों में शत्रु उग आए हों
तब शत्रु से प्रीत लिखूंगा मैं
जब अपनों में परायापन जागा हो
तब परायों को मीत लिखूंगा मैं
इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं............!!

मैं घोर तिमिर की गोदी में
दीपक लिख कर आऊंगा
मैं संघर्षों की वेदी पर
बलिदानों का रूपक लिख कर आऊंगा

मैं विकट विवशता के पल में
धरणी का धैर्य लिखूंगा अब
मैं कायरता के कलि कपाट पर
शोणित का शौर्य लिखूंगा अब

राहों के रोड़ों से कह दो
राही गिरना भूल गया है
अब उस सपने को भी चलना होगा
जोकि चलना भूल गया था

मृत्यु के मौसम में झरते, अश्रु के होठों पर
मलमल की मुस्कान लिखूंगा मैं
मन की मरुभूमि में मरते अरमानों के
माथों पर जान लिखूंगा मैं

उलझन में उलझे विस्तृत वितान के मगन मौन पर
जीवन की लय में बहता हँसता संगीत लिखूंगा मैं
इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं...........!!

वज्रों की वर्षा में भी अब
मैं पुष्पों सा खड़ा रहूँगा
दारुण दुःख के दरिया में
चिर चट्टानों सा अड़ा रहूँगा

है विधि वारिध में जितनी लहरे
मैं सब के सब से टकराऊँगा
हिय में शूल धसें हो फिर भी
मैं मुस्काऊँगा, गाऊंगा, लहराऊंगा

जीवन राग में रंगी हुई
रक्तिम रीत लिखूंगा मैं
इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं...........!!

तुम्हारा-अनंत

सोमवार, जुलाई 03, 2017

तेरी याद आती है.....!!

एक टुकड़ा याद अटकी है साँसों में
मैं जी रहा हूँ तो वो भी जी रही है
जब-जब ये सांस आती है
तब-तब तेरी याद आती है
तेरी याद तड़पाती है
तरसाती है, जलाती है
तेरी याद आती है.....!!

तेरे क़दमों का हर एक निशाँ
मक्का मदीना है मेरा
तेरी याद एक समंदर है
जिसमे खोया सफ़ीना है मेरा
तेरे नाम की पाकीज़ा लहरें
मुझको मुझ तक पहुंचती है
तेरी याद आती है.....!!

तेरी यादों के बिन जीना
यारा जो मुमकिन होता
मैं एक लम्हा भी ना जीता
तेरी यादों में ही मर जाता
तेरी यादें वो पोशीदा* धुन हैं
जिन पर मेरी धड़कन गाती है
तेरी याद आती है.....!!

 
तेरी यादें ही वो रास्ता है
जिस पर दिल ये चलता है
जो इसको थोड़ा छेड़ दूँ मैं
ये बच्चों जैसा मचलता है
जब दिल उलझ सा जाता है
तेरी याद उलझन को सुलझती है
तेरी याद आती है.....!!

तुम्हारा-अनंत

*अज्ञात, गुप्त, अप्रकट, छिपा 

इश्क़ का कारोबार..!!

तेरी झूठी झूठी आँखों से
मुझे सच्चा सच्चा प्यार हुआ
मैंने लाख समझाया था दिल को
पर सब समझाना बेकार हुआ
आँखों ने किया आँखों का सौदा
और इश्क़ का कारोबार हुआ
कल से लेकर आज तलक
ऐसा ही हर बार हुआ
इश्क़ का कारोबार हुआ
ऐसा इश्क़ का कारोबार हुआ-2

तेरी थिरकन पे थिरके थे कदम
फिर कहाँ बचे थे हम में हम
रोम रोम सब गिरह खुली
साँस-साँस बरसा सावन
बेफ़िकरी का आलम भी कटा
और मुझमे मैं बेदार हुआ
इश्क़ का कारोबार हुआ
ऐसा इश्क़ का कारोबार हुआ-2

इस दुनिया में ही था मैं
पर इस दुनिया का रहा नहीं
तू मुझसे वो सबकुछ बोला
जो अबतक किसी ने कहा नहीं
जो कुछ अनगढ़ था भीतर-भीतर
वो सबकुछ बन कर तैयार हुआ
इश्क़ का कारोबार हुआ
ऐसा इश्क़ का कारोबार हुआ-2

तेरा झूठा-झूठा सच जो है
सच में सच से भी सच्चा है
इससे अच्छा कुछ भी नहीं
बस ये ही सबसे अच्छा है
तेरे झूठ की गीली मिटटी से
मेरे सच का बदन साकार हुआ
इश्क़ का कारोबार हुआ
ऐसा इश्क़ का कारोबार हुआ-2

तुम्हारा-अनंत